फिर वही चहल पहल, फिर वही शोर,
लौट आयी थी वो, फिर अपने शहर
एक पल के लिए लगा, यहीं तो मेरा घर है
यहीं मेरी बोली, यहीं मेरी हंसी…
यहीं मेरी यादें, यहीं मेरा बचपन
यहीं तो मैं रहती हूँ, हमेशा से…
फिर आया समय लौट जाने का,
सन्नाटों में डूब जाने का
नये रिश्तों में खुद को ढूंढ़ने का
नये अल्फ़ाज़ों के समंदर में गोते लगाने का
कभी कभी सोचती हूँ ,
आखिर लौटना क्या है ?
उस शोर में खुद को पाना ? या सन्नाटों में खो जाना ?