गेट से निकलते देखा उसे, कथै रंग बालों में, सुनहरा चेहरा,
चमकते चमड़े का लैपटॉप बैग, हील वाली सेंडल, मेहेंगा सूट
सब कुछ तो था इसके पास
तभी बस का हॉर्न बजा,
नाइटी पर दुपट्टा ओढ़े, बाल बिखरे, अपने दो बच्चों का स्कूल बैग उठाये,
माँ ने जल्दी से बच्चों को बस में चढ़ाया, फिर वो चली, घर वापिस
धीमे कदम, ठंडी हवा जैसे उसके मन की बातें सुन रही थी
क्या कोई लम्हा है मेरा ? बस मेरा अपना ?
कब लौटूंगी इस दौड़ से मैं ?
शाम हुई, और फिर रात होने को आयी
थकी हुई, लौटी वो, लैपटॉप बैग और साथ में चार फाइलें भी
घर पहुंची, देखा, बच्चे सो चुके थे
टेबल पर खाना लगा था, साथ खाने वाला कोई न था
अकेले बैठे, मोबाइल स्क्रीन को देखती नम आँखें,
खिड़की से बाहर नज़र गयी, देखा, बच्चों को कहानी सुनाती एक और माँ
……सब कुछ तो है इसके पास…..
…. कब लौटूंगी इस दौड़ से मैं !